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अब रिवायात से हटकर देखो / चाँद शुक्ला हदियाबादी

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तुम् रिवायात से हटकर देखो
अपने घूँघट को पलटकर देखो
 
दोस्तों से तो गले मिलते हो
दुश्मनों से भी लिपट कर देखो

उतनी फैलाओ कि तन ढँक जाए
अपनी चादर में सिमट कर देखो
 
स्वर्ग के ढोल सुहाने सपने
पहले दुनिया से निपट कर देखो
 
और फैले तो बिखर जाओगे
’चाँद’ की तरह भी घट कर देखो