भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सर पर चढ़ल आजाद गगरिया / रसूल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:17, 1 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसूल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} Category:भोजपुरी भाषा <poem> सर पर…)
सर पर चढ़ल आजाद गगरिया, संभल के चल डगरिया ना ।
एक कुइंयां पर दू पनिहारन, एक ही लागल डोर
कोई खींचे हिन्दुस्तान की ओर,कोई पाकिस्तान की ओर
ना डूबे,ना फूटे ई, मिल्लत<ref>मेल-जोल </ref> की गगरिया ना । सर पर चढ़ल ....
हिन्दू दौड़े पुराण लेकर, मुसलमान कुरान
आपस में दूनों मिल-जुल लिहो,एके रख ईमान
सब मिलजुल के मंगल गावें, भारत की दुअरिया ना । सर पर चढ़ल....
कह रसूल भारतवासी से यही बात समुझाई
भारत के कोने-कोने में तिरंगा लहराई
बांध के मिल्लत की पगड़िया ना । सर पर चढ़ल....
शब्दार्थ
<references/>