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घरां पधारो सायबा / ओम पुरोहित कागद

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तीनूं एकला
भेलप में
करै जातरा
भरै साख
जूण री।

एकली झील
एकली नाव
एकलो आदमी
पण
तीनूं
एकला कद!

अदीठ नै
दीठ में बांधण
भंवै माणस
मारै हेला
पण भूलै
किणी री दीठ
मगरां बंधी
उडावै कागला
घरां पधारो सायबा!