भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्यथा सब की / अज्ञेय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:24, 2 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=आँगन के पार द्वार / अज्ञेय }} {{KKCatKavita}}…)
व्यथा सब की,
निविड़तम एकांत
मेरा ।
कलुष सब का
स्वेच्छया आहूत;
सद्यःधौत अन्तःपूत
बलि मेरी ।
ध्वांत इस अनसुलझ संसृति के
सकल दौर्बल्य का,
शक्ति तेरे तीक्ष्णतम, निर्मम, अमोघ
प्रकाश-सायक की !