Last modified on 4 फ़रवरी 2011, at 14:22

नहीं बेसब्र चाहत होती है / श्याम कश्यप बेचैन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:22, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम कश्यप बेचैन }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> नहीं बेसब्र चाहत…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नहीं बेसब्र चाहत होती है
दिल को दिल से राहत होती है

जिसकी जैसी नीयत होती है
उसकी वैसी बरकत होती है

मैंने भी तो चाहा था तुझको
अपनी अपनी क़िस्मत होती है

तुम तो मिल कर खुश होते हो पर
कुछ लोगों को दिक़्क़त होती है

अगर कहीं है धुआँ आग होगी
यूँ ही नहीं शिकायत होती है

गूंगा मत समझो चुप रहने की
कुछ लोगों की आदत होती है

मैं शायर हूँ वहाँ न ले जाओ
जहाँ दिमाग़ी कसरत होती है