भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शैतान-1 / भरत ओला

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:52, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भरत ओला |संग्रह=सरहद के आर पार / भरत ओला}} {{KKCatKavita‎}} <Po…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पांडाल में
ये जो साफे बांधे
बैठे हैं
आदमी नहीं
गोभी के फूल हैं
जितने खिलने थे
खिल लिए
और खिलने की सोचना
तुम्हारी भूल है

अब ये
ठप्पा लगा
पंजा लड़ाएगें
और आपस में उलझ
लड़-मर जाएंगें
बचे-खुचे
रेंगते हुए
तुम्हारे पास आएंगें

और तुम
हमेशा की तरह
सबको प्यार देना
बारी-बारी से
कान में फूंक मारना
और जाते वक्त
हाथ में
हथियार देना
आडू लट्ठ हैं
टम-टमाटम बजाते रहेंगें
और हम
गलबहियां डाले
भाईचारे का मेघ मल्हार
गाते रहेंगें
गुनगुनाते रहेंगें।