भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शीशे की दीवार में बंद / श्याम कश्यप बेचैन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:56, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम कश्यप बेचैन }} {{KKCatGhazal}} <poem> शीशे की दीवार मे…)
शीशे की दीवार में बंद
मछली तड़पे जार में बंद
सब कुछ है अंधियार में बंद
सूरज काले ग़ार में बंद
घूम रही कश्ती-सी दुनिया
गिर्दाबी रफ़्तार में बंद
किसने इकतारा छेड़ा है
सब कुछ है झनकार में बंद
फूँको-फूँको ज़ोर से फूँको
लपटें हैं अंगार में बंद
बरखा इन आँखों में बसना
होना जब तुम क्वार में बंद