बच्चों के लि॒ए एक चिट्ठी / मंगलेश डबराल
प्यारे बच्चो हम तुम्हारे काम नहीं आ सके । तुम चाहते थे हमारा क़ीमती
समय तुम्हारे खेलों में व्यतीत हो । तुम चाहते थे हम तुम्हें अपने खेलों
में शरीक करें । तुम चाहते थे हम तुम्हारी तरह मासूम हो जाएँ ।
प्यारे बच्चो हमने ही तुम्हें बताया था जीवन एक युद्धस्थल है जहाँ
लड़ते ही रहना होता है । हम ही थे जिन्होंने हथियार पैने किये । हमने
ही छेड़ा युद्ध हम ही थे जो क्रोध और घृणा से बौखलाए थे । प्यारे
बच्चो हमने तुमसे झूठ कहा था ।
यह एक लम्बी रात है । एक सुरंग की तरह । यहाँ से हम देख सकते
हैं बाहर का एक अस्पष्ट दृश्य । हम देखते हैं मारकाट और विलाप ।
बच्चो हमने ही तुम्हे वहाँ भेजा था । हमें माफ़ कर दो । हमने झूठ कहा
था कि जीवन एक युद्धस्थल है ।
प्यारे बच्चो जीवन एक उत्सव है जिसमें तुम हँसी की तरह फैले हो ।
जीवन एक हरा पेड़ है जिस पर तुम चिड़ियों की तरह फड़फड़ाते हो ।
जैसा कि कुछ कवियों ने कहा है जीवन एक उछलती गेंद है और
तुम उसके चारों ओर एकत्र चंचल पैरों की तरह हो ।
प्यारे बच्चो अगर ऎसा नहीं है तो होना चाहिए ।
(1988)