भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फागुन का रथ / माहेश्वर तिवारी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:33, 9 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माहेश्वर तिवारी |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> ऐसे पल-छिन म…)
ऐसे पल-छिन
मन से कितना
बोझ अकथ
गुज़रा है
काँप रहे
खिड़की के पर्दे
मेज़ों पर गुलदस्ते
उड़ती हुई
गंध में
खोये
भौंचक हैं चौरस्ते
कहीं पास से
नया-नया फागुन का
रथ गुज़रा है
कानाफूसी, चर्चा
अफ़वाहों वाला
यह मौसम
टेसू की डालों में
बाँध रहा
गीतों का परचम
कितने राख हुए
मोड़ों से
होकर पथ गुज़रा है