भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कई सहस्र स्वप्नों के बीच / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:32, 12 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः अनिल जनविजय Category:कविताएँ Category:अनिल जनविजय ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकारः अनिल जनविजय

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


कई सहस्र

स्वप्नों के बीच

एक सपना वह

था नितान्त अपना वह


देखा मैंने--

धीरे से एक अणु उतरा

चिपक गया उससे आ डिम्ब

फिर उभरा उनके पीछे से

हम दोनों का मिश्रित प्रतिबिम्ब


(2000)