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भाई / नीरज दइया
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धरती अर कोख सारू
हुवै सगळा एक जेड़ा-
बीज ।
एक ई माटी सूं उगै
आकड़ो
अर
आम !
कविता का हिंदी अनुवाद
धरती और कोख के लिए
होते हैं सब एक से
बीज ।
एक ही माटी से ऊगते हैं
आक
और
आम ।
अनुवाद : सतीश छीम्पा