भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पराजित हो गये / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:42, 20 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान }} {{KKCatNavgeet}} <poem> पराजित ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पराजित हो गये
लो पराजित हो गये फिर
कॅपकपाते दिन
ढेालकों की थाप पर
गाने लगा फाागुन
बज उठी मंजीर खॅझरी
पर सुहानी धुन
आ गये मिरदंग ढफ
झॉझें बजाते दिन
खिल उठे फिर ढाक, सेमल
के अरूण हो गात
आ गये श्री हीन तरूओं
पर सुकेामल पात
छू गये मन केा बसन्ती
गुनगुनाते दिन
बोल मुखरित हो उठे
फिर नेह सरगम के
कसमसाने लग गये
जडबन्ध संयम के
आ गये फिर प्यार का
मधुरस लुटाते दिन