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हिमालय / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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हिमालय
हिमगिरि के शिखरों पर
हिम की रेखा पतली
शेष रही अब और कगारों में
कुछ निचली
और गयी रेखायंें हिम की
खाकी नीली
हिमबिहीन हैं इन्द्र नील
मणियों का टीला
गए मेघ वर्षा के अम्बर से गिरि के
हिम जल से गंभीर
किनारे कर सरि सरि के
हंस सुर्य फिर पर्वत पंुज अनेक पार कर
हंसता जैसे पथिक सुख भरे गृह में आकर
(हिमालय कविता से )