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अनुभूतियाँ / वाज़दा ख़ान
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तुम शब्द दो मुझे
आदिमकाल से आज तक के
लिख दूँगी
तुम्हारे और अपने संघर्षों का दस्तावेज़
इतिहास के तौर पर नहीं--
अनुभूतियाँ वही हैं आदिमकाल से
आज तक
जिन्हें हम कह सकते हैं कि
ढल गई हैं वे परम्पराओं में ।