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तुम्हारा चेहरा / आलोक श्रीवास्तव-२

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कल का तुम्हारा
इतना खुश चेहरा
भूल नहीं पाऊँगा

जो भीतर-ही-भीतर
स्वीकार करता प्यार को
उत्फुल्ल हो उठा था

और जिस पर
दुख की आड़ी-तिरछी
तमाम लकीरों के बीच
रात्रि का एक
सुदूर उदित
तारा लिखा था ।