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डायरी : मार्च'78 (रावण के माथे) / अरुण कमल

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रचनाकारः अरुण कमल

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एक माथा दूसरे से

दूसरा तीसरे से

तीसरा चौथे से...सातवें से...दसवें से

भिड़ा-टकराया,

हर माथा अलग-अलग बोला

अलग-अलग मुँह फेर ताका

एक-दूसरे को डाँटा

दिशा-ज्ञान बाँटा

ज़रा भी चली हवा कि माथा

माथे से टकराया

लड़ा-झगड़ा

एक ही धड़ पर आँखें मटकाता ।


लेकिन अन्दर-अन्दर रावण के ये

दस-दस माथे

रहे सोचते एक ही बात

एक ढंग से एक ही बात

रावण के ये दस-दस माथे ।