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भाग्य-फल / अरुण कमल

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रचनाकारः अरुण कमल

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मैंने आज ज्योतिषि को देखा

बीच बाज़ार में

मैंने आज शहर के सबसे बड़े ज्योतिषि को

कुँजड़िन से मोल-भाव करते देखा

दो कौड़ी की मामूली कुँजड़िन से

बस दस पैसे के वास्ते मुँह लगाते देखा

और कुँजड़िन भी कितनी मुँहफट थी

एक न छोड़ी

सरे बाज़ार लूट ली लंग


बेचारा ज्योतिषि

आज यही लिखा था भाग्य में !