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आग छूटी जा रही / श्याम नारायण मिश्र
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उँगुलियाँ सम्हालूँ
या दिया बालूँ,
आग छूटी जा रही है
मुट्ठियों से ।
आग का आकार
हाथों में अधूरा है,
इसे भीतर तक उतरने दो ।
दे रहा हूँ
एक आकृति आग को
रोशनी में धार धरने दो ।
आप भी अवसर मिले तो,
खोजना भीतर
आग जो माँ ने भरी
है घुट्टियों से ।