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आंधी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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आंधी
(यथार्थ के आग्रह का प्रदर्शन)

जीवन की यथार्थता का
मुझे देख होेता है ज्ञान
डंडों से पत्तों को झाड़,
वृक्षों को झकझोर उखाड़,
मैं क्रोधित शेर सा दहाड़
हरता हरियाली के प्राण,
जिन्हें न ईश्वर का भी डर,
मुझे देख वे भी थर थर।
(आंधी कविता का अंश)