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बिखरे हैं पर / हरीश निगम

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खाली पिंजरा
डोल रहा
ओसारे में!

चला गया
सुगना
बिखरे हैं पर
टीसों के
मौसम से
गए ठहर
फ़र्क न लगता
शाम-सुबह
अंधियारे में!

फेरे हैं
दिन-भर
परछाईं के

आए ना
झोंके
पुरवाई के
टोना-सा है
अमलतास
कचनारों में!