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आज की कविता / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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पुलिस है हैरान और परेशान
दृष्टिहीन कुर्सी
दे रही फ़रमान-
'जल्दी बताओ लाश किसकी है?'
'नहीं पता'
'तो तुम कर क्या रहे हो ?'
-हुज़ूर किसी सेठ की
या साहूकार की लाश नहीं है।
किसी बदमाश या मक्कार
की भी नहीं लगती यह लाश ।'
'तुम बेवकूफ़ हो
समझ नहीं पा रहे हो कि
यह किसी आम आदमी की लाश है ।
यह आम आदमी
सबसे ख़तरनाक है ।'
'इसको कहीं छुपाओ
यह आम आदमी
हमेशा हंगामा करता है
जहाँ चाहे वहाँ मरता है ।
यह आम आदमी
कब क्या कर बैठे
इसका कुछ भरोसा नहीं
इसे जैसे भी हो ठिकाने लगाओ
इस प्रेत से जैसे भी हो
मुक्ति पाओ ।
यह तुम्हारी नौकरी
खा जाएगा
और हमारा तो जीवन ही
लील जाएगा ।
यह ज़रूरी है
आज के इस
इस आम आदमी को
काबू में रखने के लिए ।'