दोहावली / तुलसीदास / पृष्ठ 36
दोहा संख्या 350 से 360
मनि भाजन मधु पारई पूरन अमी निहारि।
का छाँड़िअ का संग्रहिअ कहहु बिबेक बिचारि।351।
उत्तम मध्यम नीच गति पाहन सिकता पानि।
प्रीति परिच्छा तिहुन की बैर बितिक्रम जानि।352।
पुन्य प्रीति पति प्रापतिउ परमारथ पथ पाँच।
लहहिं सुजन परिहरहिं खल सुनहु सिखवन साँच।353।
नीच निरादरहीं सुखद आदर सुखद बिसाल।
करदी बदरी बिटप गति पेखहु पनस रसाल। 354।
तुलसी अपनो आचरन भलो न लागत कासु।
तेहि न बसात जो खात नित लहसुनहू को बासु।355।
बुध से बिबेकी बिमलमति जिन्ह कें रोष न राग।
सुहृदय सराहत साधु जेहि तुलसी ताकेा भाग।356।
आपु आपु कहँ सब भलो अपने कहँ कोइ कोइ।
तुलसी सब कहँ जो भलो सुजन सराहिअ सोइ।357।
तुलसी भलो सुसंग तें पोच कुसंगति सोइ।
नाउ किंनरी तीर असि लोह बिलोकहु लोइ।358।
गुरू संगति गुरू होइ सेा लघ्ज्ञु संगति लघुनाम ।
चार पदारथ में गनैं नकि द्वारहू काम।359।
तुलसी गुरू लघुतालहत लघुसंगति परिनाम ं।
देवी देव पुकाअित नीच नारि नर नाम।360।