भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसको क्या-क्या हुनर नहीं आता / मदन मोहन दानिश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:11, 19 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन मोहन दानिश |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} {{KKCatGhazal}} <poem> उसको क…)
उसको क्या-क्या हुनर नहीं आता,
दर-ब-दर है, नज़र नहीं आता ।
जबसे दुनिया का सच खुला हम पर,
कोई झूठा नज़र नहीं आता ।
शेर कहना, उदास हो लेना,
ये हुनर भी अगर नहीं आता ?
सोचता हूँ, अब इस बुलंदी से,
काश जीना नज़र नहीं आता ।
कितने मौसम बदल गए दानिश,
आने वाला मगर नहीं आता ।