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माया में मन / पूर्णिमा वर्मन

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दिन भर गठरी
कौन रखाए
माया में मन कौन रमाए
दुनिया ये आनी जानी है
ज्ञानी कहते हैं फ़ानी है
चलाचली का-
खेला है तो
जग में डेरा कौन बनाए
माया में मन कौन रमाए
कुछ न जोड़े संत फ़कीरा
बेघर फिरती रानी मीरा
जिस समरिधि में-
इतनी पीड़ा
उसका बोझा कौन उठाए
माया में मन कौन रमाए