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ठंड के अहसास वाले पल / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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आग थे जो
अब ठिठुरता जल हुए,
ठंड के अहसास वाले
पल हुए !
बर्फ़ में ढलने लगे
ज्वाला मुखी
रोशनी की हर जलन
लगती चुकी
धुएँ गीली आँख का
काजल हुए !
धूप की गर्मी
हुई है चाँदनी
लू हिमानी शीत का
कुहरा बनी
सूर्यदेही
अब सजल बादल हुए !
बींधती है देह
हिमदंती हवा
धमनियों में
एक सन्नाटा थमा
गूँजते वन
मौन के जंगल हुए !
ठंड के अहसास वाले
पल हुए !