Last modified on 25 मार्च 2011, at 02:04

गए साल की / केदारनाथ अग्रवाल

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:04, 25 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गए साल की
ठिठकी ठिठकी ठिठुरन
नए साल के
नए सूर्य ने तोड़ी।

देश-काल पर,
धूप-चढ़ गई,
हवा गरम हो फैली,
पौरुष के पेड़ों के पत्ते
चेतन चमके।

दर्पण-देही
दसों दिशाएँ
रंग-रूप की
दुनिया बिम्बित करतीं,
मानव-मन में
ज्योति-तरंगे उठतीं।

रचनाकाल: ०१-०१-१९७८