झंकृत होती हैं
नाड़ियाँ
शिराओं का बढ़ जाता है चाप
तापमापी करता दर्ज़
तापमान
अड़तालीस डिग्री सैलसियस
कविताऍ होती वाष्पित जल-सी
उत्सर्जित होती
स्वेद-सी
फूटती मन और शरीर से
फैल जाती हैं
ब्रह्मांड में
नाड़ियाँ
शिराओं का बढ़ जाता है चाप
तापमापी करता दर्ज़
तापमान
अड़तालीस डिग्री सैलसियस
कविताऍ होती वाष्पित जल-सी
उत्सर्जित होती
स्वेद-सी
फूटती मन और शरीर से
फैल जाती हैं
ब्रह्मांड में