भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज-सुता के तेज तरल तरंग ताकि / ग्वाल
Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:42, 28 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग्वाल }}{{KKAnthologyGarmi}} Category:पद <poem>सूरज-सुता के तेज तरल त…)
सूरज-सुता के तेज तरल तरंग ताकि,
पुंज देवता के घिरें ताके चहुँ कोय के ।
ग्रीषम-बहारैं, बेस छूटत फुहारैं-धारैं,
फैलत हजारैं हैं गुलाब स्वच्छ तोय के ॥
ग्वाल कवि चंदन कपूर-चूर चुनियत,
चौरस चमेली चंदबदनी समोय के ।
खास खसखाने, खासे खूब खिलवतखाने,
खुलि गे खजाने खाने-खाने खुसबोय के ॥