भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तिरस्कार करने पर / प्रेमशंकर रघुवंशी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 28 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर रघुवंशी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> तिरस्कार करने पर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तिरस्कार करने पर बोलो क्या पाओगे
नफ़रत की भाषा में कब तक गा पाओगे ?

ख़ुद के ही हाथों क्यों ख़ुद को ही मार रहे
बिना किए काम धाम ख़ुद से ही हार रहे
ओछी इस हरकत में कब तक रह पाओगे ?

जिस जिसने तन मन में अहंकार ओढ़ा है
उस उसने जीवन के घट का रस फ़ोड़ा है
रोप रहे यदि बबूल आम कहाँ खाओगे ?