भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वसंत / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
					Pratishtha  (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:03, 28 मार्च 2011 का अवतरण
 
एक कोयल गाती है 
टीस भरा एक गीत 
फिर
दूर अमराईयों में कहीं
उड़ कर खो जाती है 
मैं विह्वल हो कर खोजता हूँ 
उस कोयल को
पूछता हूं वृक्षों से 
शाखों से 
पर 
कोयल नहीं मिलती फिर कहीं
कोयल बार बार आती है 
गाने वही गीत
कोयल 
हर बार 
उड़ कर खो जाती है …
	
	