भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब वसन्त आया / मोहन राणा

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 28 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वसन्त आया

बहार लाया

हवा कुछ ग़रम

ठण्ड नरम

वसन्त आया

हँसता हुआ

रंग लाया फूलों

पत्तों में

ग्रीष्म से पहले नीला आकाश

हल्के कपासी बादल

लाया वसन्त अपने साथ

आया नहा-धो लम्बी नींद से

सुबह जल्दी उठ गया,

कब मुझे पता भी न चला अपने में डूबे

साथ हो लिया अचानक ही देखा

अरे वसन्त!


31.05.1996