Last modified on 1 अप्रैल 2011, at 10:15

सड़क-2 / श्याम बिहारी श्यामल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:15, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम बिहारी श्यामल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> फँसे हुए…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फँसे हुए हैं
हम लोग सारे
पूरे वज़ूद के साथ

बिछा हुआ है
हमारी बस्ती में
ज़िन्दा-ज़हरीला
घना सर्प-जाल !