भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आठवें आश्चर्य के बाद / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:09, 3 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=कल सुबह होने के पहले / श…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मांस-पेशियों की
उधेड़-बुन में गुम
एक पूरी शताब्दी
किसी बन्द हो रहे पिरामिड के नीचे
अपनी नियति से बँधी
निःशब्द-निष्कम्प खडई है !
एक बीती हुई ज़िन्दगी
शताब्दी की सम्पूर्णता से भी बड़ी है !
यहाँ तक कि :
पिरामिड के पत्थर को
उलट कर
बाहर आ जाने वाला इंसान भी
उससे छोटा है !
(1966)