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परम्परा / शलभ श्रीराम सिंह
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परम्परा है
बीमार कम्पोज़ीटरों की गर्भवती पत्नियों के
अस्पताल जाकर -खैरात में दवा लाने की !
चूल्हा फूँकने और माथे से पसीना पोंछ कर
हाँफने की ! रोती बच्ची को-
पहले पुचकारने- पीछे थप्पड़ मारने की !
परम्परा है
खूबसूरत चेहरों के
आदमकद आईनों के सामने मुसकराने की !
गालों पर पाउडर की तह जमाते हुए सोचने की !
अच्छी शामें बिताने के नाम पर
क्लबों और होटलों में जाकर
प्यालियों और बाँहे बदलने की !
(1965)