भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुम्हरा के घर हांडी आछे अहीरा के घरि सांडी / गोरखनाथ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:24, 4 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोरखनाथ |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> कुम्हरा के घर हांडी …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुम्हरा के घर हांडी आछे अहीरा के घरि सांडी ।
बह्मना के घरि रान्डी आछे रान्डी सांडी हांडी ।
राजा के घर सेल आछे जंगल मंधे बेल ।
तेली के घर तेल आछे तेल बेल सेल ।
अहीरा के घर महकी आछे देवल मध्ये ल्यंग ।
हाटी मध्ये हींग आछे हींग ल्यंग स्यंग ।
एक सुन्ने नाना वणयां बहु भांति दिखलावे ।
भणत गोरष त्रिगुंण माया सतगुर होइ लषावे ।