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साँसों में दर्द भरा है/ विनय प्रजापति 'नज़र'
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रचनाकाल : 2005/2011
साँसों में दर्द भरा है
आज हर मंज़र हरा है
वह पहली नज़र से मेरे
शीश:-ए-दिल में ठहरा है
हर-सू, हर शै में वह है
और उसी का चेहरा है
मेरा दर्द सिमटता नहीं
हाले-दिल बहुत बुरा है
अंधेरों की आदत नहीं
सो जुगनुओं का पहरा है
'नज़र' वह पसंद है मुझे
उसका दिल भी गहरा है