भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टूट कर आईना लगे है मुझे / ज़िया फ़तेहाबादी
Kavita Kosh से
Ravinder Kumar Soni (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 10 अप्रैल 2011 का अवतरण
टूट कर आईना लगे है मुझे |
वो जो बन्दा ख़ुदा लगे है मुझे |
मैं भले को बुरा कहूँ क्यूँ कर
है बुरा जो भला लगे है मुझे |
ठीक ही तो पता बताया था
फिर भी कुछ ढूंढ़ता लगे है मुझे |
किसी आँगन में बजती शहनाई
क्या बताऊँ कि क्या लगे है मुझे |
रात भर नाचता नचाता रहा
वो मेरा साँवला लगे है मुझे |
माँग कर दिल हुआ शिकार ए ख़िरद
ये तो मेरी ख़ता लगे है मुझे |
ये जो बैठा है हुजरा ए दिल में
मैं नहीं दूसरा लगे है मुझे |
कमसुख़न कमनिगाह कमआमेज़
कोई शायर " ज़िया " लगे है मुझे |