भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुलज़ार के लिए / उमेश पंत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:25, 12 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमेश पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> कभी-कभी जब पढ़ता हूँ गुलज़ा…)
कभी-कभी जब पढ़ता हूँ गुलज़ार तुम्हें
ग़ुल जैसे महकते लफ़ज़ों के मानी हो जाते हैं
और लफ़ज़ ज़हन के पोरों को गुलज़ार किए देते हैं
लगता है कि एक सजा-सा गुलदस्ता
लाकर के किसी ने ताज़ा-ताज़ा रक्खा हो
और विचारों की टहनी में भावों की कोमल पँखुड़ियाँ नाच रही हों
अक्ष्रर-अक्षर मेरे ज़हन में रंग से भर जाते हैं
फिर मैं भी तो गुलज़ार हुआ जाता हूँ....