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कमरे में कबूतर / उमेश पंत

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मेरे कमरे में कबूतर आया
अच्छा लगा कि
कोई तो है साथ मेरे
बहुत देर से बैठा-सा वो
कुछ सोच रहा था
जो सोच रहा था
मुझे मालूम नहीं
मैने देखा उसे नज़र भर के
सोचा चलो कुछ बात करूँ
जैसे ही उठा
और कुछ बोला
वो उड़ गया खिड़की से लपकता
पलक झपकते ही

बाहर गर्मी है
वो लौट कर आएगा ज़रूर
उसकी फ़ितरत भी है
इन्सानों-सी
मुझको लगता था कि
कोई तो अलहदा है यहाँ ।
अच्छा हुआ इस बार
परिंदे ने नसीहत दे दी ।