भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ताकि / महेश चंद्र पुनेठा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 26 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश चंद्र पुनेठा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> एक मीठे अम…)
एक मीठे अमरूद की तरह हो तुम
जिसका
पूरा का पूरा पेड़ उगाना चाहता हूँ
मैं अपने भीतर
तुम फैला लो अपनी जड़ें मेरी
एक-एक नस में
पत्तियाँ एक-एक अंग तक
चमकती रहें जिनमें संवेदना की ओस
तुम्हारी छाल का
हल्का गुलाबीपन छा जाए मेरी आँखों में
होठों में
तुम्हारे भीतर की लालिमा
तुम फूलो-फलो जब
मैं हो आऊँ
दुनिया के कोने-कोने तक
बाँट आऊँ
तुम्हारी मिठास को
ताकि
तुम्हारी तरह
मीठी हो जाए सारी दुनिया ।