भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बात क्या है / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज तू उदास है चमेली,

बात क्या है.


उदासी आ ही जाती है

बुलाने कोई जाता है

बताऊँ क्या.


अरी चल

मुझ से छिपाती है

कोई बात आज फिर कही होगी भैया ने


भैया ने ?


उटक्कर ही मारती है तू भी प्रभा

भैया अब चुप रहा करते हैं समझी

कुछ नहीं कहते


तो फिर यह उदासी क्यों है बता


रात युगों बाद, स्वप्न देखा

स्वप्न देखा वही बार बार इन आँखों को

झलक दे दे जाता है


क्या देखा


देखा वे हमारे द्वार आए हैं

रँगे हैं वस्त्र ख़ून से

पसली में बाईं ओर छुरा धँसा हुआ है

चेहरे की रेखा रेखा पीड़ा की डगर है


मेरी ओर देखा

जाने कैसे हँसी आ गई . बोले, "चमो

पाँच घाव खाए हैं तुम्हारे लिए

अभी मन नहीं भरा

फिर तन पाऊँ तो तुम्हारी राह आऊँगा

अभी मेरे रोम रोम भूखे हैं


प्रभा, क्या करूँ मैं, बता

क्या करूँ ?