भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम! / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:08, 1 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कहें केदार खरी खरी / के…)
दोष तुम्हारा नहीं-हमारा है
जो हमने तुम्हें इंद्रासन दिया;
देश का शासन दिया;
तुम्हारे यश के प्रार्थी हुए हम;
तुम्हारी कृपा के शरणार्थी हुए हम;
और असमर्थ हैं हम
कि उतार दें तुम्हें
इंद्रासन से-देश के शासन से,
अब जब तुम व्यर्थ हो चुके हो-
अपना यश खो चुके हो!
रचनाकाल: १६-११-१९५९