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वह - 3 / केदारनाथ अग्रवाल

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वह
जाकर
चली आती है
रूपए लेकर
बलात्कार भोगकर
दूसरों के साथ,
ब्याह गए
बुद्धू के साथ
समाज की आँखों में
जीने के लिए
कैद
और कुंठित।

रचनाकाल: २०-०६-१९७२