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ये साधक / केदारनाथ अग्रवाल
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ठाट-बाट के सुविधा-भोगी
ये साधक-आराधक धन के
निहित स्वार्थ में लीन निरंतर
बने हुए हैं बाधक जन के
केंद्र-बिंदु पर बैठे-ठहरे
चक्र चलाते हैं शोषण के
रचनाकाल: ०६-१०-१९७६