अवधू माँस भषन्त दया धर्म का नास ।
मद पीवत तहाँ प्राण निरास ।
भाँगि भषन्त ग्यान ध्यान षोवँत ।
जम दरबारी ते प्राणी रोवँत ।।
अवधू माँस भषन्त दया धर्म का नास ।
मद पीवत तहाँ प्राण निरास ।
भाँगि भषन्त ग्यान ध्यान षोवँत ।
जम दरबारी ते प्राणी रोवँत ।।