भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 3
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 4 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=र…)
राक्षस बानर संग्राम
( छंद संख्या 34, 35 )
(34)
गहि मंदर बंदर-भालु चले,
सो मनो उनये घन सावनके।
‘तुलसी’ उत झुंड प्रचंड झुके,
झपटैं भट जे सुरदावनके। ।
बिरूझे बिरूदैत जे खेत अरे,
न टरे हठि बैरू बढ़ावनके।
रन मारि मची उपरी- उपरा
भलें बीर रघुप्पति रावनके।34।
(35)
सर तोमर सेलसमूह पँवारत, मारत बीर निसाचरके।
इत तें तरू-ताल-तमाल चले, खर खंड प्रचंड महीधरके। ।
‘तुलसी’ करि केहरिनादु भिरे भट, खग्गा खगे , खपुबा खरके।
नख-दंतन सों भुजदंड बिहंडत , मुंडसों मुंड परे झरकै।35।