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राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 12

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राम की कृपालुता-12


( छंद संख्या 23,24)


(23)

भूमिपाल, ब्यालपाल, नाकपाल, लोकपाल,
कारन कृपाल , मैं सबैके जीकी थाह ली।

कादरको आदरू काहूकें नाहिं देखिअत,
 सबनि सोहात है सेवा-सुजानि टाहली।।

तुलसी सुभायँ कहै, नाहीं कछु पच्छपातु,
कौने ईस किए कीस भालु खास माहली।

रामही के द्वारे पै बोलाइ सनमानिअत,
मोसे दीन दूबरे कपूत क्रूर काहिली।23।

(24)

सेवा अनुरूप फल देत भूप कूप ज्यों,
बिहूने गुन पथिक पिआसे जात पथके।

लेखें-जोखें चोखें चित ‘तुलसी’ स्वारथ हित,
 नीकें देखे देवता देवैया घने गथके।ं

गीधु मानो गुरू कपि-भालु माने ीमत कै,
पुनीत गीत साके सब साहेब समत्थके।

और भूप परखि सुलाखि तौलि ताइ लेत,
 लसमके खसमु तुहीं पै दसरत्थ के।24।