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रामप्रेम ही सार है / तुलसीदास/ पृष्ठ 12

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रामप्रेम ही सार है-12

 (59)

लोग कहैं , अरू हौहु कहौं, जनु खोटो-खरो रघुनायकहीको।
रावरी राम! बड़ी लघुता , जसु मेरो भयो सुखदायकहीको।।

कै यह हानि सहौं, बलि जाउँ कि मोहू करौ निज लायकहीको।
 आनि हिएँ हित जानि करौ, ज्यों हौं ध्यानु धरौं धनु- सायकहीको।।

(60)

 आपु हौं आपुको नीकें कै जानत , रावरो राम! भरायो-गढ़ायो।
कीरू ज्यों नामु रटै तुलसी, सो कहै जगु जानकीनाथ पढ़ायो।।

सोई है खेदु, जो बेदु कहै, न घटै जनु जो रघुबीर बढ़ायो।।
 हौं तो सदा खरको असवार, तिहारोइ नामु गयंद चढ़ायो।।