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हाय हिंदी! हाय हाय हिंदी../ रवीन्द्र दास

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दिल खुश हो उठता है

जब कोई तारीफ करता है हमारी जुबान हिंदी की

गोया लगने लगता है

इतनी खुबसूरत जुबान पहले न थी

हमारी हिंदी

जब से भांड जैसे कवि हो गए हैं

हिंदी के सिपहसलार

चक्रधर, मुरलीधर हो गए है

हिंदी के पुरोधा

गो कि बिकने को रान और सीने का हिलना भी

बिकता है बेहिसाब

लेकिन उसका नाम स्मिता पाटिल, शबाना के फन के साथ

नहीं लिया जाता है

कोई शरीफ माँ-बाप नहीं चाहते

कि उसकी औलाद बोले हिंदी

बिकना -बेचना नहीं है कोई सुबूत

कि हमारी हिंदी फलफूल रही है

हमने देखी हिंदी की औकात

अपने ही हिंदुस्तान में

कि लोग सम्मान या प्रेम नहीं

रहम करते है ............