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झरै है सुर... : दोय / राजेश कुमार व्यास

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राग मधुवंती नै सुणती बैळा


सागर खावै छोळा
एक लहर
दूजी...तीजी...चौथी...
अर
आगै सूं आगै लहर
सागर खावै छोळा
चोखी लागै
आवती अर
जावती लहर्या
हरैक लहर
भरै मांय रो खालीपण
मांय घिर्यौड़े अंधारै
रै सामीं
जगावै दिवळा
अर
करै है घणकरो उजास।